पलकों की घूंघट में छिपता है
प्यार
प्यार में सिमटकर खिलता है संसार
एक हृदय धड़का हो आकर्षित तड़पा
एक खिंचाव अनजान विकसित कड़का
छन्न हुई अनुभूतियां लेकर वह
खुमार
प्यार में सिमटकर खिलता है संसार
अनजाने प्राण में लगे समाहित
प्राण
अपरिचित व्यक्तित्व चावल कहां
मांड
दो हृदय एक लगें भीनी सी झंकार
प्यार में सिमटकर खिलता है संसार
मानवीय समाज की हैं विभिन्न रीतियाँ
प्यार जताने की नियंत्रित हैं
नीतियां
प्यार तो उन्मुक्त नकारे विभक्ति
द्वार
प्यार में सिमटकर खिलता है संसार
पूछिए दिलतार से भंजित प्यार
वेदनाएं
कब छूटा कैसे टूटा भला कोई क्यों
बताए
टीस, तड़प, नैतिकता खड़ग की टंकार
प्यार में सिमटकर खिलता है संसार।
धीरेन्द्र सिंह
21.05.2024
15.29
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें