बातों ही बातों में ले लेते हैं रुपए
साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए
शालीनता, शिष्टता के बन पुजारी
कितनों के खाते में की है सेंधमारी
अर्थजाल बना मोहक कहें चमकिए
साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए
ज्ञानी, समझदार, सतर्क भी फंसते
खुद से लुटा दिया देर में हैं समझते
भावनाओं से खेलते चाहें और भभकिए
साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए
चालबाजों का समूह रचते रहता व्यूह
सबकी निर्धारित भूमिका चालें गुह्य
लोभ की लपक दबंग उमंग ना गहिए
साइबर क्राइम के शिक्षित बहुरुपिए।
धीरेन्द्र सिंह
23.12.2024
17.39
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