हृदय डूबकर नित सांझ-सकारे
हृदय की कलुषता हृदय से बुहारे
बूंदें मनन की मन सीपी लुकाए
हृदय मोती बनकर हृदय को पुकारे
इतनी होगी करीबी कुशलता लिए
आकुलता में व्याकुलता हँसि निहारे
कौंधा जाती छुवन एक अनजाने में
होश में कब रहें ओ हृदय तो बता रे
भाग्य से प्यार मिलता खिलता हुआ
मंद मंथर मुसाफ़िर मधुर धुन सँवारे
एक पवन बेबसी से दूरियां लय धरी
गीत अधरों पर सज नयन को दुलारे
यह कौन जागा हृदय भर दुपहरिया
आंच उनकी रही भाव मेरा जला रे
लिख दिया कौन जाने सुनेगी वह कब
हृदय गुनगुनाए मन झंकृत मनचला रे।
धीरेन्द्र सिंह
06.10.2024
13.08
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