कैसी यह मंडली कैसा यह कारवां
भीड़ की बस रंग डाली-डाली है
रौद्र और रुदन से होता है जतन
उलाहने बहुत कि निगाहें सवाली हैं
क्या करेगी भीड़ व्यक्तियों की मगर
अगर हृदय चेतना बवंडर सवाली है
वर्षा जल सींच रहे पौधे किनारों के
कौन अजनबी कह रहा वह माली है
भीड़ एक शोर है मंडली तो गलचौर है
साजिंदे एकल हैं संगीत की रखवाली है
धुनों में, सुरों में, बेसुरा का काम क्या
थाप नए गीत की भाव नव हरियाली है।
धीरेन्द्र सिंह
29.06.2024
10.21
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