भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
बस यही खयाल है
काल्पनिक धमाल है
प्यार की रंगीनियाँ
मन के कई ताल हैं
खींच ले हृदय भाव
फिर अबीर गुलाल है
भावनाएं नदी उफनती
कहां क्या सवाल है
प्यार भी विवशता है
होता दो चार साल है
सब दिलों में झांकिए
अभिनय भरा गाल है।
धीरेन्द्र सिंह
22.06.2024
07.26
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