रविवार, 26 मई 2024

प्रेम परिभाषा

 

प्रेम की फिर मिली वही परिभाषा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

कहां मिलते ऐसे जो करते ऐसा प्रेम

कब खिलते मन जो करते ऐसा मेल

क्या सही प्रेम में ही जीवन प्रत्याशा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

मन बहुत मांगे भाव बहुत कुछ चाहे

तन को क्यों भूलें अलग ही वह दाहे

दावा, क्रोध न बदला, बस अर्पण जिज्ञासा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

बोल गईं वह मुझसे सहज थी अभिव्यक्ति

मन को बता गईं पूरा होती क्या आसक्ति

प्रीति रीति अनोखी, अद्भुत, अविनाशा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

आभार प्रकट निज हृदय करे बन ज्ञानी

प्रेम डगर निर्मोही राही नहीं हैं अनुरागी

कैसे अपनी प्यास दबे प्रकृति मधुमासा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा।

 

धीरेन्द्र सिंह

26.05.2024

10.48



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