रविवार, 21 अप्रैल 2024

गुईंया

 कहां तक चलेगा संग यह किनारा

कहां तक लहरों की हलचल रहेगी

तुम्ही कह दो बहती हवाओं से भी

कब तक छूती नमी यह रहेगी


कहो बांध पाओगी बहती यह धारा

तरंगों पर कब तक उमंगें बहेगी

मत कहना कि वर्तमान ही सबकुछ

फिर वादों की तुम्हारी तरंगे हंसेगी


डरता है प्यार सुन अपरिचित पुकार

एक अनहोनी की शायद टोली मिलेगी

कहां कौन प्यार खिल रहा बारहमासी

मोहब्बत भी रचि कोई होली खिलेगी


अधर, दृग, कपोल रहे हैं कुछ बोल

एक मुग्धित अवस्था आजीवन चलेगी

कहीं ब्लॉक कर निकस जाएं गुईंया

मुड़ी जिंदगी तब निभावन करेगी।


धीरेन्द्र सिंह


21.01.2024

11.56

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