मंगलवार, 9 जनवरी 2024

चली गई

 कौन जाने कौन सी बला टल सी गई

भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई


सुबह होते ही व्हाट्सएप पर झंकार

प्रीतमयी संवेदना का आदर सत्कार

नित नए अंदाज चाहे बातें भी नई

भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई


मैंने नहीं मेरे घर ने भी दिया दुत्कार

हिम्मती थी वह प्रतिदिन की अभिसार

चेतना में वेदना की संवेदना लड़ी गई

भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई


वर्ष तक किया उसकी चंचलता पर वार

इधर-उधर फुदकने से मानी ना हार

एक संग कई को घुमाती गली गई

भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई


अब मस्तिष्क मुक्त सजाए निस सर्जनाएं

साहित्य में घटित वही भाव लिखते जाएं

पकड़ ली, जकड़ ली लहर थी डंस गई

भाग्य का सहारा था एकदिन चली गई।


धीरेन्द्र सिंह

09.01.2024


18.56

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