रविवार, 7 जनवरी 2024

छोरी

 चाहत की इतनी नहीं कमजोरी

क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी


गर्व के तंबू में तुम्हारा है साम्राज्य

चापलूसों संग बेहतर रहता है मिजाज

सत्य के धरातल पर क्षद्मभाव बटोरी

क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी


उम्र कहे प्रौढ़ हो, किशोरावस्था लय है

जहां भी तुम पहुंचो, तुम्हारी ही जय है

तुम हो तरंग बेढंग की मुहंजोरी

क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी


राह अब मुड़ गयी इधर से उधर गयी

झंकृत थी वीणा अब रागिनी उतर गयी

सर्जना के शाल ओढ़ाऊँ न सिंदूरी

क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी


आत्मा से आत्मा का होता विलय

तुम ढूंढो आत्मा में दूजा प्रणय

सुप्त यह गुप्त, निरंतर है लोरी

क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी।



धीरेन्द्र सिंह

08.01.2024

08.48

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