गुरुवार, 4 जनवरी 2024

बिनकहे

 मुझे हर तरह छूकर तुमने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


एक बंधन ही था, जिलाए भरोसा

तुमने भी तो, थाली भर परोसा

यकायक नई माला लगे दूर जपने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


वेदना यह नही मात्र अनुभूतियां

प्यार में भी होती हैं क्या नीतियां

प्यार तो अटूट देखे मजबूर सपने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


तन की चाहत में है सरगर्मियां

प्यार तो महक दिलों के दरमियां

प्यार बंटता भी है कब कहा युग ने

तोड़ दिए बिनकहे नूर सपने


चाह की राह में कैसा भटकाव

जुड़ी डालियां जब तक ही छांव

कैसा अलगाव खुद को लगे छलने

तोड़ दिए बिनकहे नूर सपने।


धीरेन्द्र सिंह

05.02.2024


08.23


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