चांद देखा झांकता भोर में बांचता
रात भर कुछ सोचता रहा जागता
ग्रह-नक्षत्र से जग भाग्य है संचालित
सूर्य-चांद से जीव-जंतु है चालित
कौन सी ऊर्जा चांद निरंतर है डालता
रात भर कुछ सोचता रहा जागता
आ ही जाता चांद झांकता बाल्कनी
छा ही जाता मंद करता भूमि रोशनी
तारों से छुपते-छुपाते मन को टांगता
रात भर कुछ सोचता रहा जागता
यूं ना सोचें चांद का यही तौर है
चांदनी बिना कैसा चांद का दौर है
कह रहा है चांद या कुछ है मांगता
रात भर कुछ सोचता रहा जागता।
धीरेन्द्र सिंह
12.10.2023
05.53
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