मंगलवार, 18 जनवरी 2022

दालान

 अहसान के दालान में

गौरैया का खोता है,

जेठ की धूप खिली

मन सावन का गोता है;


खपरैले छत छाई लतिकाएं

पदचिन्ह दालान भरमाएं

दृष्टि कहे बड़ा वह छोटा है

सूना पड़ा गौरैया खोता है;


फिर वही पाद त्राण अव्यवस्थित

कौन है व्यक्तित्व फिर उपस्थित

मन के हल से नांध तर्क जोता है

झूम रहा क्यों आज खोता है।

धीरेन्द्र सिंह

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