बंद करते जा रहे हैं
हर द्वार, रोशनदान
प्रत्यंचाएं खींची हुई
शर्मिंदा हृदय वितान
रहे छुपाए बच न पाए
कोई कैसे पाया संज्ञान
बंद घरों में पसरे धूल
भावनाएं छू ले मचान
राजनीति हो या जगनीति
भाए न किसी को बिहान
अंधकार, खामोशी छलके
नैया, चप्पू, लंगर, श्रीमान।
धीरेन्द्र सिंह
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