गुरुवार, 12 सितंबर 2019

नारी सिर्फ श्रृंगार
मनभावन अभिसार
या कुछ और भी
करता है निर्धारित
देखने का तौर भी,

देह की दालान
या असीम आसमान
वासना उन्माद की
यह एक संस्कार
या तासीर आधुनिक दौर की,

यही तो समझाई हो
कुछ ना छुपाई हो
नारीत्व दमदार की
प्रीत संगिनी गुरु वंदनी
जीवन के हर टंकार की,

प्यार भी और शक्ति भी
उन्नयन की आसक्ति दी
कर्मयुद्ध की संगिनी भी
अस्त्र भी हो शस्त्र भी बनो
कवच हर एक प्रहार की।

धीरेन्द्र सिंह


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