सोमवार, 5 मार्च 2018

बिंदिया

           बिंदिया

एक आग मसल अंगुलियों में
बिंदिया बना दूं
भाल पर ताल ज़िन्दगी का दे
सरजमीं सजा दूं
सम्मोहित दृष्टि की वृष्टि में
तिरोहित आकांक्षाएं
रूप के ओ अप्रतिम अंदाज़
आ दिलजमीं बना दूं

अनूठेपन धारित आलोकित रूप
रश्मियाँ छंटा दूं
लपेटकर अपनी अंगुलियों में प्रीत
युक्तियां अटा दूं
सुर सितार कपाल ध्वनित करे
समर्पित बेसुध अंगुलियां
प्रेम गहनता समेट बिंदिया की
रीतियां बसा दूं

एक आग मसल अंगुलियों में
बिंदिया बना दूं
ललाट लहक उठे ज्वाल प्रीत
सिद्धियां बहा दूं।

धीरेन्द्र सिंह

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