सोमवार, 24 दिसंबर 2012

नारी


जीवन, जगत, जश्न भरी किलकारी

संभव वहीं जहां पुलकित है नारी

व्योम सी विशालता धारा सा सहन
सूरी सी प्रखरता चन्दा सी शीतल न्यारी
सृष्टि की रचयिता समाज की सशक्तता
प्रखरता, प्रांजलता,प्रस्फुटन की क्यारी

एक गहन वृक्ष है और सघन छांव
संरक्षण, सुरक्षा, संरक्षा, सुधि सारी
परिवार, समाज और देश देखे एकटक
जीत का प्रयास करे विजय की तैयारी

धन्य है समाज पाकर यह कोमलता
सौम्य, शांत, सहृदय, सुगम सुकुमारी
पर प्रचंड अति विहंग, दबंगता से दबंग
विविधता विस्तार कर रचे नए फुलवारी।    

   



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

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