लिए जीवन उम्र की भार से
एक हृदय ईश्वरी पुकार से
जीवन के द्वंद्व की ललकार से
बुढ़ापे को दे रहा अमरत्व है
ले आकांक्षा स्वप्निल सत्कार से
एक मन आंधियो के अंबार से
लिप्त जीवन के बसे संसार से
वृद्धता मचले जहां ममत्व है
दृष्टि में सृष्टि की ख़ुमार से
तन की लाचारी भरी गुहार से
भावनाओं को मिली बुहार से
कृशकाया से छूट रहा घनत्व है
अंजुरी में छलकते दुलार से
आंगन के कोलाहली बयार से
कुछ नहीं बेहतर परिवार से
बुढ़ौती का यही अपनत्व है
अद्वितीय रचना....
जवाब देंहटाएंइसकी प्रशंसा को उपयुक्त शब्द संधान असंभव है...