आप मुझे निहार जब करें श्रृंगार
कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार
मौसम मन को यहां-वहां दौड़ाए
लगे बिहँसि मौसम आपमें इतराए
नयन-नयन के बीच जारी भाव कटार
कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार
कितना परवश कर जाता है मौसम
कभी पसीना मस्तक, फूल पड़े शबनम
ना रही शिकायत ना कोई तकरार
कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार
हवा सुगंधित ऐसे जैसे सुरभित केश
मन बौराया मौसम या कारण विशेष
पुष्पवाटिका हृदय, है प्रतीक्षित द्वार
कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार।
धीरेन्द्र सिंह
27.07.2024
19.11
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