शीतल चले बयार दिल जले हजार
किसी को पड़ी कहां
कंबल बंटते दग्ध अलाव मन पुकार
अजी वह अड़ी कहां
कविताएं हर भाव जगाएं खूब नचाए
साजिंदों की अढ़ी कहां
उष्मित कोमल भाव लिख रहे रचनाकार
इनको किसकी पड़ी कहां
हर दिन उगता मद्धम सूर्य रश्मि लिए
पंखुड़ी शबनम जुड़ी कहाँ
ठंढी अपनी मंडी पूरी निस साज सँवारे
ओला, बर्फ,ओस लड़ी जहां
शीतल चले बयार आतिथ्य मिले विभिन्न
सांस भाप बन उड़ी कहां
दिन ढलते चूल्हा जल जाए भोज लिए
जीमनेवाले बेफिक्र, घड़ी कहां।
धीरेन्द्र सिंह
28.12.2024
17.52
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