रविवार, 10 नवंबर 2024

पगला

 प्यार कब उथला हुआ छिछला हुआ है

प्यार जिसने किया वह पगला हुआ है


एक धुन की गूंज में सृष्टि मुग्ध हर्षित

एक तुम हो तो हो अस्तित्व समर्पित

जिसने चाहा प्रेम जीना वह तो मुआ है

प्यार जिसने किया वह पागल हुआ है


सृष्टि भी देती भाग्यशालियों को पागलपन

कौन इस चलन में देता है अपनापन

परिवेश लगे खिला-खिला मन मालपुआ ही

प्यार जिसने किया वह पागल हुआ है


इसी पागलपन में रचित होती सर्जनाएं

मौलिकता गूंज उठे चेतना को हर्षाए

यह भी अद्भुत दिल ने दिल छुआ है

प्यार जिसने किया वह पागल हुआ है।


धीरेन्द्र सिंह

10.11.2024

20.28




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें