प्यार कब उथला हुआ छिछला हुआ है
प्यार जिसने किया वह पगला हुआ है
एक धुन की गूंज में सृष्टि मुग्ध हर्षित
एक तुम हो तो हो अस्तित्व समर्पित
जिसने चाहा प्रेम जीना वह तो मुआ है
प्यार जिसने किया वह पागल हुआ है
सृष्टि भी देती भाग्यशालियों को पागलपन
कौन इस चलन में देता है अपनापन
परिवेश लगे खिला-खिला मन मालपुआ ही
प्यार जिसने किया वह पागल हुआ है
इसी पागलपन में रचित होती सर्जनाएं
मौलिकता गूंज उठे चेतना को हर्षाए
यह भी अद्भुत दिल ने दिल छुआ है
प्यार जिसने किया वह पागल हुआ है।
धीरेन्द्र सिंह
10.11.2024
20.28
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