मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

मन

 मन की अंगड़ाईयों पर मस्तिष्क का टोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल


तरंगों की चांदनी में प्रीत की रची रागिनी

शब्दों में पिरोकर उनको रच मन स्वामिनी

नर्तन करता मन चाहे बजे प्रखर हो ढोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल


अभिव्यक्त होकर चूक जातीं हैं अभिव्यक्तियाँ

आसक्त होकर भी टूट जाती हैं आसक्तियां

यह चलन अटूट सा लगता कभी बस पोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल


यह भी जाने वह भी माने प्रणय की झंकार

बोल कोई भी ना पाए ध्वनि के मौन तार

कहने-सुनने की उलझन मन का है किल्लोल

क्या उमड़-घुमड़ रहा अटका मन का बोल।


धीरेन्द्र सिंह

07.10.2025

21.26

#मन#चांदनी#उमड़-घुमड़#प्रणय#किल्लोल

सोमवार, 6 अक्टूबर 2025

अभिनय

 अभिनय


अपूर्णता सुधार में सर्जक बन क्षेत्री

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री


हम सब स्वभावतः अभिनय दुकान हैं

जितना अच्छा अभिनय उतना महान है

कामनाएं पूर्ति में सजग प्रयास की नेत्री

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री


अब कहाँ सामर्थ्य बिन आवरण बहें

असत्य को सत्य सा प्रतिदिन ही कहें

बौद्धिक हैं विकसित हैं मानवता गोत्री

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री


क्षद्म रूप विवशता है जग की स्वीकार्य

स्वार्थ ही प्रबल दिखावा कुशल शिरोधार्य

समाज प्रगतिशील हैं व्यक्ति बंद छतरी

अभिनय हैं करते अभिनेता-अभिनेत्री।


धीरेन्द्र सिंह

07.10.2025

04.31

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

आँधियाँ

आँधियाँ


प्रतिदिन दुख-सुख की आंधियां हैं

व्यक्ति तैरता समय की कश्तियाँ हैं

रहा बटोर अपने पल को निरंतर ही

कहीं प्रशंसा तो कहीं फब्तियां हैं


अर्चनाएं टिमटिमाती जुगनुओं सी

कामनाओं की भी तो उपलब्धियां हैं

हौसला से फैसला को फलसफा बना

दार्शनिकों सी उभरतीं सूक्तियाँ हैं


जूझ रहा हवाओं से लौ की तरह

पराजय में ऊर्जा की नियुक्तियां हैं

अपना जीवन रंग रहा बहुरंग सा

रंगहीन हाथ लिए कूंचियाँ है


अर्थ कभी सम्बन्ध तो मिली उपलब्धि

जिंदगी बिखरी इनके दरमियाँ हैं

वही नयन आज भी उदास से हैं

सख्ती बढ़ रही अब कहाँ नर्मियाँ हैं।


धीरेन्द्र सिंह

05.10.2025

16.39



शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

तख्तियां

अपनी अभिव्यक्तियों की आसक्तियां हैं

कैसे रोकें कि कई नियुक्तियां हैं

हृदय में किसने कहा है रिक्तियां

अनेक लिए आग्रह तख़्तियाँ है


कई विकल्प लुभाने को हैं आतुर

वश में कर लिए उनके दरमियाँ हैं

कहीं तो ठंढी सांसे ढूंढें सरगम

चलन चहक उठा बढ़ी गर्मियां है


कई चिल्ला रहे बढ़ता हुआ शोर है

जो हैं समर्थ उनकी मनमर्जियाँ है

अलाव हथेलिगों में लेकर चल पड़े

पड़नेवाली गजब की जो सर्दियां है।


धीरेन्द्र सिंह

03.10.2025

14.41



गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

चाहत

चाहता कौन है पता किसको 
धड़कनें सबकी गुनगुनाती हैं
चेहरे सौम्य शांत प्रदर्शित होते
मन के भीतर चलती आंधी है

एक ठहरे हुए तालाब सा स्थिर
जिंदगी तलहटों में कुनकुनाती है
तट पर हलचल की अभिलाषी
लहरें उमड़ने की तो आदी हैं

स्वभाव विपरीत जीना है यातना
जिंदगी यूँ तो सबकी गाती है
निभाव खुद से खुद करे जो
चाहतें वहीं महकती मदमाती हैं।

धीरेन्द्र सिंह
03.10.2025
07.35

सोमवार, 22 सितंबर 2025

 हिंदी के सिपाही - गौतम अदाणी


अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी दिनांक 22 सितंबर 2025 को एक निजी चैनल पर लाइव थे। आज रुककर अदाणी को सुनने का मन किया इसलिए चैनल नहीं बदला। अंग्रेजी में चार-पांच वाक्य बोलने के बाद अंग्रेजी में बोले गए वाक्यों को अदाणी ने हिंदी में कहा वह भी काव्यात्मक रूप में। यह सुनते ही स्क्रीन पर मेरी आँख ठहर गयी। अदाणी ने फिर अंग्रेजी में कहा और भाव और विचार को काव्यात्मक हिंदी में प्रस्तुत किये। ऐसा चार बार हुआ। आरम्भ से नहीं देख रहा था अचानक चैनल पर टकरा गया था।


सत्यमेव जयते कहकर अदाणी ने अपना संबोधन पूर्ण किया और मैं तत्काल इस अनुभूति को टाइप करने लगा। हिंदी दिवस 14 सितंबर को अपनी महत्ता जतलाते और विभिन्न आयोजन करते पूर्ण हुआ किन्तु इस अवधि में कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं मिला जिसे टाइप करने की अब जैसी आतुरता जागृत हुई हो। अंग्रेजी में बोलनेवाले किसी भी चेयरमैन को अंग्रेजी और फिर काव्य में उसी भाव को दो या अधिकतम चार पंक्तियों में बोलते अदाणी से पहले किसी को नहीं देखा।


क्यों टाइप कर रहा हूँ इस अनोखी घटना को ? एक श्रेष्ठतम धनाढ्य गौतम अदाणी हैं इसलिए ? यह सब नहीं है इस समय विचार में बस हिंदी है। हिंदी यदि अदाणी जैसे चेयरमैन की जिह्वा पर काव्य रूप में बसने लगे तो हिंदी कार्यान्वयन में इतनी तेजी आएगी कि स्वदेशी वस्तुओं पर स्वदेशी भाषा और विशेषकर हिंदी होगी। एक सुखद संकेत मिला और लगा हिंदी अपना स्थान प्राप्त कर भाषा विषयक अपनी गुणवत्ता को प्रमाणित करने में सफल रहेगी। मैंने चेयरमैन गौतम अदाणी के मुख से अपने संबोधन में कई बार हिंदी कविता का उपतोग करने की कल्पना तक नहीं  थी। 


धीरेन्द्र सिंह

22.09.2025

15.37

रविवार, 21 सितंबर 2025

शारदेय नवरात्रि

 आज प्रारंभ है अर्चनाओं का आलम्ब है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


अपनी-अपनी हैं विभिन्न रचित भूमिकाएं

श्रद्धा लिपट माँ चरणों में आस्था को निभाए

नव रात्रि नव रूप माता का निबंध है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


सनातन धर्म जीवन मार्ग सज्जित बतलाएं

नारी का अपमान हो तो कुपित हो लजाएं

नवरात्रि नव दुर्गा आदि शक्ति ही अनुबंध हैं

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


माँ का आक्रामक रूप राक्षस संहार के लिए

मनुष्यता में दानवता भला जिएं किसलिए

नारी ही चेतना नारी शक्ति भक्ति आलम्ब है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है।


धीरेन्द्र सिंह

22.09.2025

07.54