आपके व्यक्तित्व में ही अस्तित्व
निजत्व के घनत्व को समझिए
अपनत्व का महत्व ही तो सर्वस्व
सब कुछ स्पष्ट और ना उलझिए
प्रपंच का नहीं मंच भाव जैसे संत
शंख तरंग में भाव संग लिपटिए
हृदय के स्पंदनों में धुन आपकी
निवेदन प्रणय का उभरा किसलिए
आप ही से क्यों जुड़ा मन बावरा
दायरा वृहद था आपको जी लिए
आप समझें या न समझें समर्पण
अर्पण कर प्रभुत्व को तृष्णा पी लिए।
धीरेन्द्र सिंह
09.10.2025
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