सोमवार, 20 मार्च 2023

गौरैया की दो रचनाएं

 विश्व गौरैया दिवस पर : दो रचनाएं


तब।           और।     अब


सोनचिरैया।           सोनचिरैया

मेरी गौरैया।          किसकी गौरैया


मन मुंडेर।           मन मुंडेर

रोज आए।           मनचाहा धाए

जियरा।             बिफरा

हर्षाए।              उलझाए

नज़रें बोले।          चाहत बोले

ता-ता थैया।         ला-ला दैया।

मेरी गौरैया।         किसकी गौरैया


भोली मासूम।        भोली मासूम

फुदक की धूम।       आकर्षण में घूम

भोर ले चूम।         चोर ले चूम

मुंडेर ले घूम।         मुंडेर चुप घूर।

मन कुहुके।          तृष्णा उदके।

उसकी छैंया।        उसकी छैयां

मेरी गौरैया।        किसकी गौरैया।


नाम गौरैया।         नाम गौरैया

प्रीत की ठइयाँ।      मीत की ठइयाँ

मुंडेर बसेरा।          मुंडेर बसेरा

भाव की नैया।        भाव खेवैया।

कल्पना सजाए।       कल्पना जिताए

यथार्थ खेवैया।        स्वार्थ खेवैया

मेरी गौरैया।।         किसकी गौरैया।


धीरेन्द्र सिंह


मंगलवार, 14 मार्च 2023

दोहा

 दोहा


अपने दिल के कांच में,कहां-कहां है सांच

प्रणय निवेदन से पहले,उसको लीजै बांच


कितनी पड़ी किरीच है,चश्मा स्क्रैच सा नात

दिल भी शीशा नतकर,यहां-वहां पसरा घात


प्रेम वायरस अजर-अमर है,हृदय से उठती आंच

कोई उससे कला सजा ले,कोई तड़पन लिए सांस


हर युग प्रेम है बांचता, प्रेम चढ़ा न गाछ

जुगत, जतन सब चुके, खिल कुम्हलाती बांछ


आत्मा का दिल द्वार है, दिल से तन्मय तांत

बुने चदरिया पंथ, धर्म का, एक चादर-चादर बांट।


धीरेन्द्र सिंह

15.03.2023

06.46






धरा


धरा की धमनियों में कितना रिसाव

माटी से पूँछें तो जल तक पहुंचाए

भू खनन, वृक्ष गमन, निर्मित अट्टलिकाएँ

एक अक्षत ऊर्जा सभी मिल भुनाएं

 

पर्वतों को तोड़े प्रगति कर धमाके

कंपन का क्रंदन कौन सुन पाए

सुनामी के लोभी रचयिता कहीं

जलतट पाट कर भवन ही बनाएं

 

धर रहा धरा को धुन लिए कहकहा

हरित संपदा, पेय जल कहां पाए

सूख रहे कुएं, नदी तेज गति से

मटकियां झुलस रहीं बोतल को धाए

 

हिमालय भी पिघल करे प्रकट रोष

गंगा की भक्ति आरती नित सजाए

अर्चनाएं आक्रांता की सद्बुद्धि उचारें

धरती की धार चलें मिल चमकाएं।

 

धीरेन्द्र सिंह

14.03.23

15.23

 

 

 

सोमवार, 6 मार्च 2023

मने होली

 

चुटकी प्यार भरी रंगबोली

नयन सहकार दो, मने होली

 

कई रंगदार हैं, अंदाज़ लुभावन

भाव पिचकारी, गगम भर सावन

चेहरे टपक रहे, रंगपूर्ण निम्बोली

नयन सहकार दो, मने होली

 

छुवन अनुभूतियों का, यह पर्व

आप हासिल नहीं, तड़प के गर्व

भर दो रंग-तरं,ग ओ विहंग अबोली

नयन सहकार दो, मने होली

 

समय की धार में उपचार का पुचकार

प्रणय के रंग हैं विभिन्न चटकार

पलकें उठ गईं अंखिया कुछ बोली

नयन सहकार दो, मने होली।

 

धीरेन्द्र सिंह

06.03.2023

15.20

 

 

 

 

शनिवार, 4 मार्च 2023

फुरसतिया हूँ

 गंगाजल में पुष्पित तैरती लुटिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


भाषा रही भरभरा जेठ दुपहरिया 

आशा विश्वभाषा हिंदी हो चुटिया

इस षड्यंत्र का मैं खूंटिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


लूट रहे हिंदी जग हिंदी के रखवाले

मंच, किताब सजा बनते हिंदी शिवाले

इस भ्रमजाल का मैं हथिया हूं

हां मैं फुरसतिया हूँ


महानगरों में रहे फैल हिंदी मदारी

हिंदी से मिले लाभ हिंदी के हैं जुआरी

ऐसे भ्रष्ट झूठे चिंतक का सुतिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


अनेक किताब लेखन स्व सुख भाया

कितने कागज, स्थान किए यह जाया

आत्मश्लाघा विरोध की दुनिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ


हिंदी के लिए हमेशा उपलब्ध हूँ खलिहल

राजभाषा समेत हिंदी विकास हो अटल

कर्मभूमि का श्रमिक ना गलबतिया हूँ

हां मैं फुरसतिया हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

05.03.23

12.03

गुरुवार, 2 मार्च 2023

फागुन गीत


अस्तित्व ही घुल जाए

आपकी बातों, ठिठोली में

अब कैसा कोई रंग चढ़े

मुझपर इस होली में


शब्द सधे सब रंग गहे

तरंग, उमंग शब्द डोली में

अभिव्यक्त का उड़े भाव

निःशब्द आपकी होली में


लिखनेवालों ने लिख डाला 

होली को रसबोली में

फागुन गीत भटकते दिखते

देह धाम मद खोली में


पर्व कोई तो बदल रहा

वासना भाव छिछोरी में

श्रृंगार अब लुप्त हो चला

बुढ़वा देवर लागे होली में।


धीरेन्द्र सिंह

03.02.23

09.51


इस होली में


हिचके रंग गुलाल, देख गुलाबी गाल

ना सोचें नारी ही, रखतीं सुर्खाबी ताल

पुरुष गाल रंग जाएं, फागुनी ठिठोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

नारी नयन सृष्टि पिचकारी, लगे दुधारी

अंग-अंग रंग लिए, हो अनुपम चित्रकारी

पुरुष ठगा सृष्टि निरखे, अटकी बोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

घिर जाएं नारियों से, कान्हा ना बन पाएं

देख घबराया चेहरा, संग नारी मुस्काएं

झुकाए पलकें सोचे, रंग बन गए टोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

महिलाओं की देख लगन, गगन रंग डूबा

होली में जब नारी निकलें, सहमे सूबा

रंग लिए आजीवन चलतीं, नारी झोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में।

 

धीरेन्द्र सिंह

02.02.23

20.24

 

 

बुधवार, 1 मार्च 2023

होली

 होली



भींगी दरस तुम्हारी गुईंया

अबकी होली रंगदारी में

नस-नस भींगे अकुलाए

कैसी लगन रसदारी में


नैन चैन सब छीने तकते

अंखियन की गुलकारी में

जैसे होती बिदाई में

लिपटे बिटिया महतारी से


होली तुमसा बदल गयी है

आकर्षण की छविकारी में

अब कहाँ वह भाव-भंगिमा

नयनों की रिश्तेदारी में


हाँथ गुलाल मल गाल लाल

अंगों की तरफदारी में

तुम भी कुछ ऐसी हो बहकी

लोगों की छीछेदारी में


होली में भावों की टोली

बोली कबीरा लयकारी में

रंग-रंग बौराए उड़ते

चाहत की सिसकारी में।


धीरेन्द्र सिंह