सोमवार, 14 नवंबर 2022

रंगदानी गुजरिया

 जतन कीन्हा अनजानी डगरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


सीमा पर प्रहरी भीतर लहरी

रिश्ता पकड़ हर डोर ठहरी

अजब-गजब लागे नजरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


सिंदूर लगे कपाल का दिव्य भाल

सपूत बन सैनिक मजबूत ढाल

गर्वित मुहल्ला संग नगरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


ढंग है तरंग है सोच भी पतंग

गांव-गांव गीत और शहर मृदंग

झूमे देश गर्वभरी ले लहरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया।


धीरेन्द्र सिंह


दुआ

 एक मोटी परत धूल

छंट रही बादलों सी

मन लगा स्वतंत्र हुआ

ना जाने लगी किसकी दुआ


एक कोमल पाश रचनात्मक

पल प्रति पल सृजनात्मक

लेखनीय अर्चना को छुवा

कौन था वह हमनवां


चुन लिया पथ अलग

धूनी नई जगा अलख

कौन किससे अलग हुआ

विश्वास एक गरल हुआ


लग रहा था कैद

पर था दिल मुस्तैद

भूमिका प्रदर्शन मालपुआ

भ्रमित होकर बुर्जुआ।


धीरेन्द्र सिंह