शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

उलाहना

 वैश्विक हिंदी दिवस पर मिला उनका संदेसा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


क्या करता, क्या कहता, उन्होंने ही था रोका

कुछ व्यस्तता की बातकर चैट बीच था टोका

सामने जो हो उनको सम्मान रहता है हमेशा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


कहां मन मिला है किसमें उपजी है नई आशा

लगन लौ कब जले संभव कैसे भला प्रत्याशा

कब किसके सामने लगे गौण होता न अंदेशा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


हृदय भर उलीच दिया तरंगित वह शुभकामनाएं

नयन भर समेट लिया आलोकित सब कामनाएं

नव वर्ष उत्सव मना चैट द्वार पर भाव विशेषा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा।


धीरेन्द्र सिंह

10.01.2025

22.17



गुरुवार, 9 जनवरी 2025

विश्व हिंदी

 विश्व हिंदी दिवस

दस जनवरी

बोल रहा है 

बीती विभावरी,


अब न वह ज्ञान

न शब्दों के प्रयोग

नव अभिव्यक्ति नहीं

विश्व हिंदी कैसा सुयोग,


घोषित या अघोषित

यह दिवस क्या पोषित

क्या सरकारी संरक्षण

या कोई भाव नियोजित,


न मौलिक लेखन

न मौलिक फिल्माकंन

ताक-झांक, नकल-वकल

क्या है अपने आंगन ?


हिंदी की विभिन्न विधाएं

कभी प्रज्वलित तो फडफ़ड़ाएं

भाषा संवर्धन पड़ा सुप्त

हिंदी की मुनादी फिराएं।


धीरेन्द्र सिंह

09.01.2025

15.44



मंगलवार, 7 जनवरी 2025

ढलते शब्द

 न कोई बरगलाहट है न कोई सुप्त चाहत है

वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है


बहुत बेतरतीब चलती है अक्सर जिंदगानी भी

बहुत करीब ढलती है अविस्मरणीय कहानी भी

मन नहीं हारता तन में अबोला अकुलाहट है

वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है


कर्म के दग्ध कोयले पर होते संतुलित पदचाप

भाग्य के सुप्त हौसले पर ढोते अपेक्षित थाप

कभी कुछ होगा अप्रत्याशित यह गर्माहट है

वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है


बहुत संकोची होता है जो अपने में ही रहता

एक सावन अपना होता है जो अविरल बरसता

अंकुरण प्रक्रिया में कामनाओं की गड़गड़ाहट है

वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है।


धीरेन्द्र सिंह

07.01.2025

11.01



शनिवार, 4 जनवरी 2025

पीढियां

 कुछ उम्र के सहारे चढ़ते हैं सीढियां

इस युग में होने लगी ऐसी पीढियां


बच्चों को कहें पढ़ने-लिखने की उम्र

युवाओं से करते भविष्य का जिक्र

जो अधेड़ हैं उनकी है कई रीतियाँ

इस युग से होने लगी ऐसी पीढियां


अधेड़ और वरिष्ठ संचित अनुभवी

समय अपना देख बोलें अभी है कमी

प्रणय दबाकर गंभीरता की प्रीतियाँ

इस युग से होने लगी ऐसी पीढियां


खुल कर प्रणय उल्लेख बिदक जाएंगे

भक्ति, दर्शन, राजनीति दुदबुदाएँगे

एक थकी बुजुर्ग पीढ़ी की है गलतियां

इस युग से होने लगी ऐसी पीढियां


धीरेन्द्र सिंह

04.01.2025

14.12