भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता
अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता
शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
न खोने का दर्द
न पाने की खुशियां
वह दर्द में न हो
बंद है अभी बतियां
उड़ गई गौरैया
या जाल की दुनिया
पीड़ा में ना रहे
अभी सखा न सखियां
संवादहीनता का न भय
संवाद हो उसके दरमियाँ
दंभी है कोमल मनवाली
ढूंढे उसे सुर्खियां।
धीरेन्द्र सिंह