आदर्श
अंतर्मन का संग्रहित
सत्य
सिद्धांत
समय के ठोकरों से
निर्मित अनुभव
नैतिकता
सामाजिक संचालन का
अधिसंख्य सीकृति रूप,
ऐसे में डोलता है, कांपता है
उछलता है दिल
और चाहता है
अपने सोच अनुरूप
आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता;
ऐसे लोग जो नहीं समझ पाते
साहित्य की विभिन्न विधाएं
जो नहीं कर पाते विश्लेषण
देह-आत्मा-परमात्मा और
लोक-परलोक का
उन्हें अश्लील लगती है रचनाएं
आए वह मौन रहते हैं
खिलखिलाती रचना
साहित्य तुरही संग
रहती है मुस्कराती,
आत्मा और परमात्मा की
बात करनेवाले लोग
देह को समझते हैं हेय,
आश्चर्य होता है कि
अनेक समूह छोड़
साहित्य मंथन
नैतिकता का पाठ
पढ़ा रहे हैं,
साहित्य ऐसे समूह में
घुट रहा है,
बौद्धिक लेखन अनजानेपन,
अज्ञानता
साहित्यिक संभावना को
लूट रहा हैं।
धीरेन्द्र सिंह
11.07.2025
20.07