शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

सर्जनात्मकता

 
आज छल है मन अटल है, अपने विश्वास पर
परिस्थितियों का कलकल है, बस शांत हो जायेगा
जो चपल है नित्य धवल है, राग में अनुराग में
कितना भी अनगढ़ रहे वह, तुकांत हो जाएगा

भोर की बांसुरिया हो, या गोधूलि की गुंथन
एक पहर ऐसा भी होगा, आक्रान्त हो जायेगा
सौम्यता की पहचान, आसानी से कब हो पायी
प्रखरता जब आएगी, तो वृत्तांत हो जाएगा

कौन बदला है, किसी परिवर्तन की राह पर
स्वयं को जिसने भी बदला, संभ्रांत हो जाएगा
और अनुकरणीय बनेगा, कर्म से सिद्धांत से
देख उसको छल-कपट, खुद क्लांत हो जाएगा

सर्जनात्मकता हमेशा, परिवर्तन की चाह करे
सर्जक वही बने, जो दिव्यांत हो जाएगा
अपनी धुन में, एक आराधना का धुन लिए
सिल पर रसरी रगड़ते, सुखान्त हो जाएगा.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मेरी गुईयां


कहीं कभी संग मेरे कभी बन पतंग लुटेरे

कभी बनकर पुरवैया लगो बिन मांझी नैया

मेरे संग चलती हो और बरबस खिलती हो

धारा के विपरीत चलो खुद बनकर खिवैया



आधुनिक नार हो नयी शक्ति हो आधार हो

स्वाभिमान इतना जुड़ ना पाए तुमसे छैयां

ना जाने होता क्या मुझसे जब मिलती हो

एक कोमल तरंग सी उड़ लेती हो बलैयां



कोकिल स्वर में कहा था जब तुमने मुझसे
मुकर गया था फिर भी न तुम छोड़ी बईयाँ
अपने एहसासों को ना दे सके रिश्ता मिलकर
लड़खड़ा गया मैं चलती रही तुम अपनी पईयाँ


य़ह ज़िद कि अगले जनम में पा लोगी मुझे
अर्चना इस जनम का ना जाने देगा तेरा सईयां
लेकर मेरा अहसास तुम्हारा प्यार दृढ़ विश्वास
हर सांस में सरगम सी तुम हो मेरी गुईयां.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

बहुत हो अच्छी तुम


बहुत हो अच्छी तुम अच्छी लगती मुझे

ब्लॉग पर जाकर रोज निहारता हूँ तुम्हें

ना कहना गलती है या अपराध मेरा

खींच ले जाते हैं वहां कुछ बावरे लम्हें



जितना पढ़ा है तुम्हें मानो पढ़ लिया दिल

ब्लॉग तो बोलता है दिल के खालिस नगमें

धडकनें धडकनों से मिलकर बन जाती धुन

गुनगुना उठते होंठ मेरे पाकर मीठे सदमें



दिल चाहे बोल दे तुमको, शालीनता रोके

डर लगे न जाने क्या क्या उठे, गगन में

ब्लाक कर दोगी तो बंद हो जाएगा दिल

अभी तो कोंपले ना उठी हमारे मन में



है उम्मीद यह इजहार असर लाएगा नया

आ जाउंगा मैं भी तुम्हारे ब्लॉग की हद में

वर्चुअल दुनिया में ऐसी ही होती मुलाकातें

ना जाने तुम कहाँ मैं भी अपनी सरहद में.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

सारे गुलाब बिक गए

सारे गुलाब बिक गए गुलाबो की आस में

एक दिन क्या आया कि मोहब्बत जग गयी

यह ज़िंदगी की दौड़ है हर कहीं पर होड़ है

जतला दो प्यार आज ना कहना कि हट गयी



यह धडकनों की पुकार है या कि इज़हार है

देने को भरोसा मान एक दुनिया है रम गयी

चितवन से, अदाओं से, शब्दों के लगाओं से

छूटा लगे है रिश्ता कि तोहफों की बन गयी



एक मलमली एहसास में जो छुप जाए कोई खास

ऋतुएं बदल जाएँ कि लगे धरती थम गयी

एक राग से अनुराग कि चले न फिर दिमाग

फिर कैसा एक दिन कहें उल्फत मचल गयी



यार के दरबार में ना होता रिश्तों का त्यौहार

एक बिजली चमकती है कि धरती दहल गयी

कोई गुलाब,तोहफा मोहब्बत को न दे न्यौता

एहसास का है जलवा झुकी पलकें कि चल गयी.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.