कविता प्रायः
ढूंढ ही लेती है
धुंध से
वह तस्वीर
जो
तुम्हारी साँसों से
होती है निर्मित
और जिसे
पढ़ पाना अन्य के लिए
एक
दुरूह कार्य है,
कल्पनाएं
धुंध से लिपट
कर लेती है
‘ब्लेंड’ खुद को
एक
‘इंडियन मेड स्कॉच’
,की तरह
और
दौड़ पड़ती है
धुंध संग
पाने तुम्हारी तरंग,
बहुत आसान नहीं होता है
तुम तक पहुंचना
या
तुम्हें छू पाना
तुम
जंगल के अनचीन्हे
फूल की तरह
पुष्पित, सुगंधित
और मैं
धुंध से राह
निर्मित करता
एक
अतिरंगी सोच।
धीरेन्द्र सिंह
27.04.2025
21.24
भोर में
टर्मिनल 3 पर
लगातार अर्धसैनिक
चार-पांच के झुंड में
आते जा रहे थे
और कुछ देर में
गेट 46-47 की
सभी कुर्सियों पर
अर्धसैनिक ही थे,
कभी नहीं देखा था
इतनी भीड़
और इन कुछ सैनिकों को
यह बातें करते हुए कि
गोली लगी थी
किसे
सुन न सका,
कुछ युवा सैनिक
धूपी चश्मा लगा
अपना वीडियो
बना रहे थे
और कुछ कर रहे थे
बातें वीडियो द्वारा
संभवतः अपनी पत्नी से,
श्रीनगर फ्लाइट की
घोषणा हुई
और
सभी अर्धसैनिक उठे
और बढ़ते गए
जहाज की ओर
आकाश
कर रहा था स्वागत
और एक बार फिर
लगने लगा आकाश
रहस्यमय।
धीरेन्द्र सिंह
27.04.2025
06.39
टर्मिनल 3, नई दिल्ली
गेहूं की फसल खड़ी
पगडंडी अविराम है
कृषक कहां कृषकाय
खेती तो अभिमान है
फसलें भी हैं चित्रकारी
कृषि तूलिका तमाम हैं
अर्थव्यवस्था अनुरागी यह
खेत की मिट्टी धाम है
गांवों के सुंदर हैं घर
सभी सुविधाएं सकाम हैं
आंगन धूप, हवा आए
छत में जाली आम है
नहीं मोटापा नहीं बीमारी
माटी-मेहनत तान है
खुशहाली में है किसानी
अन्नदाता का सम्मान है।
धीरेन्द्र सिंह
22.04.2025
07.10