सोमवार, 14 मार्च 2011

यह ना समझिए

 
यह ना समझिए कि, दूर हैं तो छूट जायेंगी
अबकी होली में मैंने, खूब रंगने की ठानी है
यह ना समझिए कि, मिल ना सकेंगे हम
आपके ब्लॉग से, मेरे ब्लॉग का दाना-पानी है

कुछ हैं ख्याल अलहदा, कुछ हुस्न रूमानी
कुछ अंदाज़ निराला, कुछ तो ब्लॉगरबानी है
नया रिश्ता है, अहसास रिसता है हौले-हौले
दिल की आवाज यह, ना कहिए नादानी है

मैंने चुन लिया है रंग, आपके ब्लॉग से ही
जश्न-ए-होली की टोली भी वहीं बनानी है
खिल उठेंगे रंग, आपके रंग से मिलकर ही
फिर देखिएगा कि महफिल भी दीवानी है

दिल की आवाज मन में दबाए तो होली कैसी
ज़िंदगी तो फकत अहसासों की मेहरबानी है
मिलूंगा ज़रूर इस होली पर रंग साथ लिए
मेरे रंग से तो मिलिए यही तो कद्रदानी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

होली


गुम हो गया है दिल मौसम भी करे ठिठोली
ऋतुओं की चितवन आई रंगों की लिए डोली

यूं तो हैं रंग सारे पर कुछ ही तुम्हें पुकारे
छूने को तड़प रहा दिल नए रंगों के सहारे
सज रही हैं मन में भावनाओं की कई टोली
फागुन में जिसने चाहा ज़िंदगी उसी की हो ली

होरी जो मैं गाऊं बस तुमको ही वहॉ पाऊं
बालक सा हो हर्षित संग पतंग मैं भी धाऊं
मांजे बहुत हैं लड़ते चले बेधड़क बोला-बोली
ले अपने-अपने रंग सब सजा रहे रंगोली

मेरी चुटकी में है गुलाल कर दो ना इधर गाल
ना-नुकुर नहीं आज, है यह रंगों का धमाल
एक नज़र रंग कर देखूं, लगती हो कितनी भोली
खिल जाओ संग रंग अपने, अब कैसी ऑखमिचौली

ना केवल गुलाल नहीं, रंग से भी भिगाना चाहूं
मुझसे बेहतर ना हो रंगसाज, मैं दीवाना चाहूं
पकड़ कलाई ले ढिठाई, बोलूं रस भरी बोली
लचक तुम्हारी अदाओं संग, भर दे तरंग होली.

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 13 मार्च 2011

सुनामी भूकंप


क्या नियति है, निति क्या है, क्या है नियंता
एक प्रकृति के समक्ष लगे सब कुछ है रूहानी
क्या रचित है, ऋचा क्या है, क्या है रमंता
एक सुनामी भूकंप से हो खतम सब यहाँ कहानी 

प्यार कहीं खो गया, यार कहीं सो गया, क्या करें
दिल सुनामी हो गया लगे भूकंप सी यह जिंदगानी
एक अंकुर हुआ क्षणभंगुर खिल ना सका बाग में
पल का फेरा ऐसा घेरा जल में जलते राजा-रानी

है भविष्य गर्भ में फिर भी कल के हैं फरमान  
वर्तमान कल को जीतने की कर रहा है मनमानी
प्रकृति के नियम को तोड़े नित आग नया उसमे छोड़े
हो विराट ले भव्य ठाठ नए राग जड़ने की है ठानी

विश्व में कितना तमस है इंसान भी तो परवश है
छेड़-छाड, मोड़-माड दीवानगी की बेख़ौफ़ रवानी
प्रकृति को अब और ना छेड़ो और ना अब तारे तोड़ो
मानवीय अस्तित्व संवारो प्रकृति है सबसे सयानी. 



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 10 मार्च 2011

रंगों का पर्व

 
ऱंगों का पर्व आया रंग गई हवाएं
मंद कभी तेज चल संदेसा लाएं
एक शोखी घुल कर फिज़ाओं में
पुलकित फुलवारी जैसी छा जाए

अबीर,गुलाल से शोभित हो गुलाब भाल
सुर्ख गाल देख चिहुंक रंग भी भरमाए
अधरों की रंगत छलक-छलक जाए तो
पिचकारी के रंग सब भींग के शरमाए

रंगों के पर्व पर मन हुआ अजीब है
जियरा की हूक बेचैनी दे तड़पाए
फाग की आग में कुंदनी कामनाएं
चोटी पर पहुंच दूर से किसे बुलाए

सत्य का यह विजय पर्व सबको लुभाए
होलिका दहन में राग-द्वेष सब जल जाए
आ गई रंग लेकर के फिर होली यह
ना जाने यह रंग कब किसको छल जाए,




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.