रविवार, 17 अगस्त 2025

प्रिए

 तुम कहाँ हो लिए व्यथित हृदय

कौन है अब धड़कन बना प्रिए


तृषित अधर नमक चखें समर्थित

बतलाओगी संख्या कितनी व्यथित

अनुराग विस्फोटन को लिए दिए

कौन है अब धड़कन बना प्रिए


वर्ष कई बीत गए हुए हम विलग

न जाने कौन सी जलाई अलख

ईश्वर से प्रार्थना सुखी वह जिएं

कौन है अब धड़कन बना प्रिए


आधार प्यार का मन संचेतना है

प्रमुख मिटाता वह अन्य वेदना है

प्रणय कुछ नहीं कैसे उल्लासपूर्ण जिए

कौन है अब धड़कन बना प्रिए।


धीरेन्द्र सिंह

17.08.2025

22.43


गज़ब

 सुनो में एक हद हूँ

और तुम बेहद

बात इसमें यह भी

मैं बेअदब हूँ

और तुम संग अदब,

है न गज़ब!


हम में विरोधाभास

पर मैं हताश

और तुम आकाश

बात इसमें यह भी

मैं प्रणयवादी हूँ

और तुम व्यवहारवादी

है न गज़ब!


हम में भी यह विकास

तुम दूसरे राज्य

मुझे लगो तुम साम्राज्य

बात इसमें यह भी

मैं लौ दीपक

पर तुम प्रकाश

है न गज़ब!


हम स्पष्ट विरोधाभास

मूल हित संस्कार तोड़ता बेड़ियां

तुम प्रगतिशील भूल पीढियां

बात इसमें यह भी

मैं मात्र आस

और तुम मधुमास

है न गज़ब।


धीरेन्द्र सिंह

17.08.2025

21.06





रिश्ते

कुछ रिश्ते इतने रम जाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


झटके दर झटके भी है अदा

रिश्ता है तो नोक-झोंक बदा

कब अपने रिश्ते में भर जाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


झटके से जो मरता रिश्ता नहीं

खट से मार डालें सिसकता नहीं

रह-रहकर तेज धार दिखलाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं


कई मर चुके उसकी गिनती कहां

जो अब मर रहे उनमें विनती कहां

भाव इस विलगाव पर झुंझलाते हैं

कि न जाने कब मर जाते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

17.08.2025

19.55