गुरुवार, 25 जुलाई 2024

पैसे बरस

 बूंद नहीं पैसे बरस कभी बादल

सपनीली आंखें अभाव के आंचल


छत जिनको भोजन, होता आयोजन

सावन का मौसम, लाए नए प्रयोजन

ध्वनि गूंजे टकराए, पैसा इन सांखल

सपनीली आँखें अभाव के आंचल


गरीबी दोष नहीं मात्र एक व्यवस्था

सावन इनके जीवन, भरे अव्यवस्था

दीन-हीन लगें, कुछ जैसे हों पागल

सपनीली आंखें अभाव के आंचल


इनकी करें बातें, कहलाते वामपंथी

विद्वता अनायास, धारित करे ग्रंथि

जो कह न सकें बातें हों कैसे प्रांजल

सपनीली आंखें अभाव के आँचल।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

21.27


बुधवार, 24 जुलाई 2024

अबकी सावन

 मैं चाहूं लेख लिख भारमुक्त हो जाऊं

या तो पोर-पोर भाव कविता रच जाऊं

तुम ही कह दो प्रणय संवेदिनी इस बार

अबकी सावन को कैसे में और रिझाऊं


इस बयार में देखो तो कितनी बेचैनी

बूंदे हर लेती बन मादक शीतल पैनी

पौधे, परदे, लटें तुम्हारी जैसे लहराउं

अबकी सावन को कैसे मैं और रिझाऊं


जब देखूं तुम रहती काम में सदा व्यस्त

बदरा-धरती बाहें थामे लगते हैं मस्त

भावों से कहते रहती बात समझ न पाऊं

अबकी सावन को कैसे मैं और रिझाऊं।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

09.21


ढीठ

 ढीठ बड़ा लगता है बरसात का पानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


शहर धुल जाता छप्पर सहित मकान

आप भी नई लगतीं ले स्व अभिमान

सावन सरीखा सुहानी सी जिंदगानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


कभी दूर लगें, बदलियां रचित व्योम

कभी मन श्लोक सा, पावन बन होम

प्यार शुचिता में जल, अगन तानातानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


मन की सर्जना में तन की हो गर्जना

सावनी बयार है या आपकी अभ्यर्थना

मन बहके विवेक घुड़के उम्र क्यों नादानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

09.05


मंगलवार, 23 जुलाई 2024

टूटी हैं तीली

सावन में

व्योम और धरा का

उन्मुक्त प्रणय

कर देता है उन्मादित

संवेदनशीलता को

प्रणय हवा आह्लादित,


सावन की सुबह

करती है निर्मित

हृदय प्यार पंखुड़ियां

सड़क चलें तो

मिलती जाती

प्रणय-प्रणय की कड़ियाँ,


स्व से प्यार

सड़क सिखलाए

सावन हरदम

बाहर झुलाए

भीतर तो घनघोर छटा

कुछ भींगा कुछ छूट पटा,


स्व में डूबे चलते-चलते

बारिश हो ली

खोला छाता देखा

कुछ टूटी हैं तीली

शरमाया मन 

अगल-बगल ताके नयन

जैसे खुला बटन रह गया

या हुक खुली लगे है चोली,


कौन अकेला लगता

सावन संग मनचोर है चलता

प्रकृति प्रेम बरसाए जब

छलिया मनजोर है छलता।


धीरेन्द्र सिंह

24.07.2024

07.58

रविवार, 21 जुलाई 2024

सावन की बरसात-दृश्य, अनुभूति

बरसात नहीं हो रही थी

बदलियों बेचैन थीं

हवा मद्धम थी

छाता लेकर निकल पड़ा

दैनिक चहलकदमी,

सावन का पहला दिन

बूंदें थीं गिन-गिन,


बदलियों सोच रही थीं

कभी बूंदे, कभी बंद

नहीं किया छाता बंद,

सड़क सूनी जैसे

आगमन राजनीतिक महंत,

शंकर का मंदिर

जोरदार था प्रबंध,


मैंग्रोव की लंबी हरीतिमा

और सागर

लौट पड़ा शिवकृपा ले,

बदलियां फूट पड़ीं

मानो प्रतीक्षा थी मंदिर तक,


सड़क चौड़ी अच्छी हो तो

बूंदें टकराकर सितारा बन जाती हैं,

दूर तक लगा सड़क पर

उतर आए हैं तारे,

सागर की हवा छाते को

चाह रही थीं करना उल्टा, 

एक जगह लगा 

उड़ा ले जाना चाहे हवा मुझे,

कमर तक भींग चुका था

बौछारें उन्मत्त थीं,


छाता और गिरती बूंदें

कर रही थीं निर्मित संगीत,

हवा का नर्तन था,

सावन का पहला सोमवार

सुमधुर कीर्तन था,


हवा ने बूंदों को शक्ति दी

लगा गए पूरा भींग,

मोबाइल को छाते के 

ऊपरी बटन तक पहुंचाते बचाते,

कोई ना था आते-जाते,

कभी कोई वाहन गुजर जाता,

गुजर रही थीं निरंतर पर

सड़क पर पानी की जलधाराएं

कहीं साफ तो मटमैली,


छाते को नीचे कर 

चिपका लिया सर से,

पहली बार अनुभव हुआ

बूंदों का मसाज,

नन्हीं-नन्हीं अंगुलियां असंख्य

कर रही थीं जागृत

अंतर्चेतना।


धीरेन्द्र सिंह

22.07.2024

08.39



शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

तेजस्विता

कौन देखता है नारी की ओजस्विता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता

 

चहारदीवारी में कर अभिनव चित्रकारी

घर निर्मित करती सदस्य हितकारी

अपने संग घर की संभाले अस्मिता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता

 

माना नर-नारी से निर्मित विद्यमान

पुरुष तपती धूप नारी तो है बिहान

झंझावातों में धारित लगे सुष्मिता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता

 

गृहस्थी दायित्व चुनौतियों का आसमान

नारी श्रृंगार घर छवि रचयिता अभिमान

थक कर समस्या उलझ अकेली जीवटता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता।

 

धीरेन्द्र सिंह

20.07.2024

11.18



पूछे दिल

आपकी अदा सदा रहती बुदबुदा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


एक संगीत धुन सी लगें गुंजित

ध्यान हो धन्य अदा में समाहित

जैसे भित्ती चढ़ती बलखाती लता

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


झूम कर जो चलें प्रकृति झूम जाए

आपकी दिव्यता से भव्यता मुस्काए

मुग्ध तंद्रा में दिल अंतरा दे सजा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


यह पूछना प्रश्न नहीं ललक संवाद

दिल में क्यों होता अदाओं का निनाद

क्या प्रणय अव्यक्त की यही सजा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता।


धीरेन्द्र सिंह

20.07.2024

09.30