सोमवार, 11 अप्रैल 2022

अजान और चालीसा

 धर्म वर्चस्वता स्वाभाविक

अर्चनाएं भी जरूरी

अजान की गूंज पाक

हनुमान चालीसा ना मजबूरी,


सौम्य और शांत धर्म

कोलाहल भूने जैसे तंदूरी

लाउडस्पीकर मस्जिद में ऊंचा

रामबाण भी तो प्रथा सिंदूरी


माला सब जपें तो पुकार क्यों

धर्म निजता ना जी हुजूरी

धर्म नव व्यवस्थाएं मांगे

कामनाएं सबकी हों अवश्य पूरी।


धीरेन्द्र सिंह

12.04.2022

08.42

रविवार, 10 अप्रैल 2022

शक्ति साध्य

 राष्ट्र ना हो कभी धृतराष्ट्र

राग अपना जो संवारिए

झोंके न बहा लें लुभावने

धार संस्कृति की निखारिए


वैभव, पद, यौन के खुमार

धर्म राह से इनको गुजारिए

सबके वश का नहीं ये प्यार

दृष्टि सृष्टि संग जी संवारिए


ऐसे प्रवचनों की बहती बहार

कर्महीन, तर्कदीन को बुहारिए

शौर्य, शक्ति, पराक्रम ही सत्य

शक्ति ही साध्य इन्हें संवारिए।


धीरेन्द्र सिंह

11.04.2022

10.18

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

रामनवमी

 

प्रज्जवलित प्रखर, परिपूर्ण धर्म की नमी

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी

 

राजगद्दी त्यजन, वचन निभाव की मर्यादा

वनगमन वामन मिलें, युद्ध कर्म ही ज्यादा

गलत ना स्वीकार्य ना हो निर्मित गलतफहमी

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी

 

संयोजन, समंजन, शौर्य बने दुखभंजक

शिव पूजन तो आदि शक्ति सृष्टि व्यंजक

रघुकुल रीति सकल जग की भव्य धरमी

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी

 

वर्तमान भारत देश रचे फिर सनातनी वेश

विश्व उत्सुक हो निरखे प्रगति भारत विशेष

सौम्य, शांत, सरल, सहज, शौर्य भरी सरजमीं

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी।

 

धीरेन्द्र सिंह

10.04.2022

08.22

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

सत्य या क्षद्म

 हे कौन हो तुम

क्यों आ जाती हो

मौन सी गुमसुम

मौनता आ सुनाती हो


हे मौन हो तुम

डूबती बुलबुलाती हो

निपट सन्नाटा डराए

भाव चुलबुलाती हो


हे बुलबुला हो तुम

सतह ठहर टूटती हो

सागर सी गहरी हुंकार

पुनर्नवीनीकरण ढूंढती हो


हे पुनर्नवीकरण हो तुम

नया तलाशती हो

सत्य हो या क्षद्म कहो

क्यों रिश्ते बहलाती हो।


धीरेन्द्र सिंह

08.04.2022

00.12

विलगाव

 जब मन

छोड़ने लगता है

किसी को,

दर्द मिलता है

तब

हर हंसी को;


भागती जाती है

जिंदगी

होते जाते हैं 

कद छोटे,

जीवन गति स्वाभाविक

सागर भरे लोटे;


नहीं आती याद

खिलखिलाहट, बतकही,

कौन बोले पगली

झुंझलाहट झगड़े की बही ;

नहीं कहता मन

पूछें योजना अगली;


हर धार को अधिकार

मन अपने बहे,

चाहे संग नदी चले

या किनारे को गहे,

मोड़ एक मुड़ना

फिर क्या सुने क्या कहे।


धीरेन्द्र सिंह

07.04.2022

13.34

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

शब्द

 सुनो प्रयास तज्ञ शब्द संचयन

समेट पाओ क्या स्मिति नयन

उठाए भार अभिव्यक्ति गमन

रंग पाओगे मुझ जैसे प्रीत चमन


मेरा सर्वस्व ही मेरा निजत्व है

शब्द कहो कहां तुम्हारा है वतन

मेरी अनुभूतियां परिकल्पनाएं 

शब्द कर पाओगे हूबहू जतन


आत्मा मेरी जुड़े आत्मा उसकी 

धरा की कोशिशें ठगा सा गगन

बहुत बौने, बहुत अधूरे हो शब्द

मेरी आत्मा मेरी आराधना, नमन।


धीरेन्द्र सिंह

06.04.2022

16.08

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

जैसे कश्मीर

 जब टूटा सब टूटा और टूटा धीर

अब लगता षडयंत्र जैसे कश्मीर


मां दुर्गा की प्रेरणा अबकी पुकार

नवरात्र में चिंतन-मनन में सुधार

भंवर भरोसे क्या बहें देखें तीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


इतिहास पढ़ने से क्या प्राप्ति रही

धारा ठीक चली कब उल्टी बही

कलम बिक गयी सोच टूटी प्राचीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


पीढ़ी दर पीढ़ी चढ़ती गलत सीढ़ी

रहा सुलगता सत्य रहा जैसे बीड़ी

वर्तमान प्रांजल हो बन रहा अधीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


अपना सत्य सौम्यता ठहरी है पीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर।


धीरेन्द्र सिंह

02.04.2022

13.35