गुरुवार, 1 जुलाई 2021

तुम

 तुम नयनों का प्रच्छा लन हो

तुम अधरों का संचालन हो

हृदय तरंगित रहे उमंगित

ऐसे सुरभित गति चालन हो


संवाद तुम्हीं उन्माद तुम्हीं

मनोभावों की प्रतिपालन हो

जिज्ञासा तुम्हीं प्रत्याशा तुम्हीं

रचनाओं की नित पालन हो


कैसे कह देती वह चाह नहीं

हर आह की तुम ही लालन हो 

हर रंग तुम्हीं कोमल ढंग तुम्हीं

नव रतिबंध लिए मेरी मालन हो।


धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 29 जून 2021

व्हाट्सएप्प की नगरवधुएं


वह व्हाट्सएप्प पर

सक्रिय रहती है

प्रायः द्विअर्थी बातें

लिखती हैं 

और चले आते हैं

उसके चयनित पुरुष

टिप्पणियों में

रुग्ण यौन वर्जनाओं के 

लिए शब्द

जिसपर वह अवश्य चिपकाती है

अपनी मुस्कराहट

एक रूमानी आहट,

कोई कुछ भी बोल जाए

उसे फर्क नहीं पड़ता

जिसे चाहती है वही

उसके व्हाट्सएप्प में रहता,

पुस्तकें हैं उसे मिलती

चयनित पुरुषों के

प्रेम और यौन उन्माद की

कथाओं की पुस्तकें,

सभी पुरुष होते हैं

तथाकथित साहित्यिक

छपाए पुस्तकें

अपने पैसों से

खूब होती है गुटरगूं

इन नकलची लेखक जैसों में,

हिंदी लेखन की मौलिकता

कुचल रहीं यह नगरवधुएं

यदि मौका मिले तो पढ़िए

कैसे हैं पुरुष इन्हें छुए।


धीरेन्द्र सिंह


शुक्रवार, 25 जून 2021

तड़पे प्यास

 यह उम्र गलीचा

वह मखमली एहसास

समंदर ने कब कहा

पानी में तड़पे प्यास।


धीरेन्द्र सिंह


वह आई थी

वह आई थी
 हथेलियों में भर भावनाएं 
मिलकर उसे पुष्प बना दिए 
उसने कहा
 इन फूलों से सजाना है आसमान 
मैंने कहा बड़ा है व्योम से 
मन का आकाश बसा दो 
अपनी फुलवारी 
वह नहीं मानी 
भौरों के झुंड में 
तलाशने लगी आसमान। 

 धीरेन्द्र सिंह