मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बसंत पंचमी और वेलेंटाइन

सत्य के अलाव में सौंदर्य की अनुभूति
उष्मामयी जीवन का प्यारा अभिनंदन है
बसंत पंचमी में लग रही नव वासंती हो
चिहुंक उठा मन वेलेंटाइन का जो क्रंदन है

ऋतु बसंत में सुगंधमय परिवेश उन्मुक्त
बावरे चमन में कली,भ्रमर लगे सघन हैं
प्रीति का व्यापारिकरण कर रहा वेलेंटाइन
वासंती रूनझुन में खोया मन मगन है

बदल रहा मौसम संग बदल रही अमराई
बहक रहे बादल संग मुखर यह जीवन है
सृष्टि के बहाव संग ढल रही भावनाएं
महक-महक रोम उठा सज उठा गगन है

नयन भर प्यार मेरा छलक-छलक बुलाए
रूप को निहार लूं प्रीत का जगवंदन है
आ गया बसंत अब आ भी तो जाईए
पुष्प रंध्र मार्ग है आह बनी चंदन है।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

जीवन संघर्ष


विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
है लक्ष्य खड़ा लगे प्रतिद्वंदी बड़ा
अब चिंतन में ना निर्झर हना

पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना

एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना

रहे कुछ ना अटल, है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी के सोच से क्या करना.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
 अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

निज भाव

शब्दों में पिरोया भाव तो अभिव्यक्ति बन गई
सम्प्रेषण का हुआ असर कि नई प्रीत बन गई

ई-मेल, टिप्पणियॉ या कि रचनाएं नई-नई
उन तक पहुंचने की कोशिशें गम्भीर बन भई

मन में भरे सतरंग तो निगाहों में है इज़्जत
आकर्षण का हलफनामा बन तीर तन गई

नित नए कौशल लिए प्रतिभा करे करिश्मा
रूचिकर लगे उनको तो मानो तकदीर बन गई

हर भाव की मंज़िल है अपना ही निज भाव
प्रस्ताव हो अपवाद तो नई लकीर बन गई.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.