शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

संजाल

 इंटरनेट के जंगल में

उलझा व्यक्ति

स्वयं को पाता व्यस्त

होकर मस्त,

कामनाएं 

फुदकती गौरैया सी

भटक चलती है तो

कभी ढलती है

मन को रखते व्यस्त,


गुजरते दिन लगे

जाते हैं भर

सुखभाव

करते निभाव और

बदलते स्वभाव

दौड़ते रहता है मन

कस्तूरी मृग सा,

लगे धमनियां बन चुकी

इंटरनेट संवाहक;


व्यक्ति

संजाल में

कर निर्मित जाल

जंगल हो गया है।


धीरेन्द्र सिंह

05.10.2024

09.28



मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

शब्द धमाका

जितना छपता है

क्या उतना

पढ़ा जाता है ?

लेखन और पाठक

हैं इतना-उतना,

जोड़ पाता है ?


अब लोग पढ़ते नहीं

देखते हैं

घटित सभी घटनाएं, 

शब्द झूठ बोलते लगें

लोग दृश्य को अपनाएं,

छूट रहे हैं शब्द

दृश्य ही अच्छा लगे

जग जैसे निःशब्द;


शब्दों का सन्नाटा ?

है गलत शोध

शोर कर रहे शब्द

ज्यों धमाका बोध,

शाब्दिक प्रत्याशा

थी ऐसी न भाषा,

किसको दें दोष

है सभी में जोश,

चेतना स्तब्ध

जग जैसे निःशब्द;


क्या है धमाका बोध ?

क्या शब्द का यह शोध ?

क्या है यह प्रतिरोध ?

किसका ?

भाषा का, संस्कृति का

एक सोच या प्रारब्ध 

हलचलें आबद्ध

कोई नहीं निःशब्द।


धीरेन्द्र सिंह

01.10.2024

20.47, पुणे




सोमवार, 30 सितंबर 2024

शब्द

 शब्दों में भावनाओं की है अदाकारी

पढ़ा जाए शब्दों में वह बतियां सारी


किस तरह के अक्षरों से शब्द बनाए

किस तरह के शब्दों से हैं भाव रचाएं

सत्य कुछ असत्य बस शब्द चित्रकारी

पढ़ा जाए शब्दों में वह बतियां सारी


बहुत श्रम लगता है शब्द को पकाना

बहुत कौशल चाहिए भाव शब्द सजाना

तब सजती रचना भर पाठक अंकवारी

पढ़ा जाए शब्दों में वह बतियां सारी


दिल कहे दिमाग तौले शब्द तैरते हौले

भाव गूंथते शब्द थिरकते कथ्य बिछौने

अभिव्यक्त बन कुशल हो बहुअर्थ धारी

पढ़ा जाए शब्दों में वह बतियां सारी।


धीरेन्द्र सिंह

30.09.2024

17.47, पुणे




रविवार, 29 सितंबर 2024

ऐ सखी

 ऐ सखी ओ सखा प्रीत काहे मन बसा

आप तो लिखते नहीं क्या मैं हूँ फंसा


इतना हूँ जानता जो जिया मन लिखा

बेमन है जो लिखे खुद कहां पाते जीया

जीतना कहां किसे मीठे ऐंठन में कसा

आप तो लिखते नहीं क्या मैं हूँ फंसा


नित्य लेखन प्रक्रिया हुई ना ऐसी क्रिया

कथ्य की वाचालता भाव उभरी कहे प्रिया

मनोभाव आपके भी दर्शाते क्या ऐसी दशा

आप तो लिखते नहीं क्या मैं हूँ फंसा


असभ्य ना अशिष्ट समझें शब्द यहां फंसा

झूमने लगे क्यों कोई बिन वजह बिन नशा

अपनी गोल से पूछता बेवजह क्यों हंसा

आप तो लिखते नहीं क्या मैं हूँ फंसा।


धीरेन्द्र सिंह

29.09.2024

14.09