हो आधा-आधा किसलिए
जरूरत से ज्यादा किसलिए
आपकी जागीर कब तलक
यह शान लबादा किसलिए
हर हलक में अनबुझी प्यास
सांस का इरादा किसलिए
जब तलक चल रहे है पांव
थकन है पुकारा किसलिए
अपने-अपने हैं युद्ध सभी के
युद्धभूमि एक गवारा किसलिए
शस्त्र कभी शास्त्र लगते खास
रणकौशल वही सहारा किसलिए
चर्चा न हो समीक्षा भी नहीं
ऐसा व्यक्ति बेचारा किसलिए
अपनी धुन में जी रहे जितने
सोचे छोड़ा या दुलारा किसलिए।
धीरेन्द्र सिंह
15.07.2025
19.45