गुरुवार, 9 मई 2024

स्वेद क्रांति

 


पसीने के बूंदों संग भाल जगमगाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

अपने भीतर ही उपजता है अपना प्यार

हृदय के कोने में छुपा रहता है वह यार

कितना भी व्यस्त रहें बूंद झिलमिलाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

स्वेद की बूंद की अपनी विशिष्ट महत्ता

श्रमिक के सिवा क्या पसीना बिन इयत्ता

तेज हो सांस तो स्वेद संतुलन बनाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

स्वस्थ साफ देह स्वेद इत्र भी शरमाए

कोई पहना वस्त्र नासिका की भरमाए

स्वेद क्रांति पर पाठ कहां कौन पढ़ाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है

 

पसीने से होती है जग में नई क्रांतियां

पसीना में भी श्रृंगार की बसी भ्रांतियां

पसीने से जुड़ता वह पूर्ण जुड़ जाता है

आपके श्रम में प्यार संग यूं निभाता है।

 

धीरेन्द्र सिंह

11.05.2024

12.08

सोच बेजार है

 मशवरा न कीजिए तर्क का बाजार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है



अपने-अपने अनुभवों से है जनित ज्ञान

हर अनुभव का अपना ही निजी मकान

आत्मस्वर ही श्रेष्ठ जुड़ा स्वतः बेतार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है


सत्य परम सत्य उसमें भी न एकरूपता

तथ्य प्रखर तथ्य न्यायालय में है नोचता

परिवेशजनित कथ्य अवधि बाद बेकार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है


इसका स्वार्थ उसका स्वार्थ निज परमार्थ

किसका कर्म किसका भाग्य स्वयं चरितार्थ

एक चिन्तनपूर्ण छल मूल लयकार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है


ना जी ना इसमें नहीं है नकारात्मकता

आदर्श की पुस्तकों सी अब कहाँ आत्मा

एक जीवन मिश्रित अभिनय से जार है

कौन किसका शुभचिंतक, सोच बेजार है।


धीरेन्द्र सिंह

09.95.2024

19.08