हिंदी में हैं लिखते तो क्यों परिशिष्ट बनिए
कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए
कुछ नया गठन से निर्मित हो साहित्य सदन
धरा आपको भी पूछे पहचानता हो यह गगन
कभी समूह, कभी संस्था कभी कुछ रचिए
कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए
देखिए कुकुरमुत्ता सा उभर जाते हैं मौसम
युद्धभूमि सैनिक तंबुओं सा अस्तित्व परचम
अपना भी तंबू रच नाम अपना शीर्ष रखिए
कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए
हिंदी भाषा कहीं साहित्य कहीं बस अवसरवाद
अपने नाम ख्याति के लिए है साहित्यिक संवाद
हिंदी के हित के बारे में बस निरंतर बोलते रहिए
कुछ अपना भी आरम्भ कर विशिष्ट बनिए।
धीरेन्द्र सिंह
06.08.2025
13.56