रविवार, 6 जुलाई 2025

मन

 मन अगन लगन का गगन

मन दहन सहन का बदन


प्रतिपल अनंत  की ओर उड़े

प्रति नयन गहन रचे तपोवन

प्रतिभाव निभाव का आश्वासन

प्रतिचाह सघन का रचे सहन


मन हर चाह को है अर्पण

मन हर आह का करे मनन

मन चाहे मन में डूबना हर्षित

मन संग व्यक्ति बहे बन पवन


मन मुग्धित होकर कहे मनभावन

मन समझे ना यह पुकार लगन

मन मेरा लिए आपका मन भी

दें अनुमति मन करे मन आचमन।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

10.47



मन उपवन

 चेतनाओं की है चुहलबाजियाँ

कामनाओं की है कलाबाजियां

एक ही अस्तित्व रूप हैं अनेक

अर्चनाओं की है भक्तिबातियाँ


एक-दूजे का मन सम्मान करे

हृदय से हृदय की ही आसक्तियां

मन अपने उपवन खोजता चले

विलय मन से मन में हो दर्मियां


यूं ही कदम बढ़ते नही किसी ओर

कोई खींचे जैसे लिए प्यार सिद्धियां

एक पतवार प्यार की धार में चले

कोई सींचे जैसे सावन की सूक्तियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

07.07.2025

06.32