संस्कार हैं संस्कृति, हैं मन के दर्पण
उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण
रक्त में व्यक्त में चपल चेतना दग्ध में
शब्द में प्रारब्ध में संवेदना आसक्त में
दैहिक विलगाव पर आत्म आकर्षण
उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण
पितृपक्ष नाम जिसमें सभी बिछड़े युक्त
देह चली जाए पर लगे आत्मा संयुक्त
भावना की रचना पर हो आत्मा घर्षण
उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण
मनुष्यता उन अपनों के प्रति है कृतज्ञ
आत्मा उनकी शांत मुक्ति का है यज्ञ
श्रद्धा भक्ति से उनके प्रति है समर्पण
उन अपने स्वर्गवासियों का है तर्पण।
धीरेन्द्र सिंह
21.09.2025
06.40