गुरुवार, 31 मार्च 2022
शुक्रवार, 25 मार्च 2022
जीवन की थाह
डबडबा जाती हैं आंखें
क्या कहूँ, कैसे कहूँ
बस लगे मैं बहूँ;
एक प्रवाह है
बेपरवाह है
जीवन की थाह है;
बस हुई मन की बातें
डबडबा जाती हैं आंखें।
धीरेन्द्र सिंह
25.03.2022
अपराह्न 01.40
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