सोमवार, 4 अगस्त 2025

प्यास

जीवन की टहनियों से शब्दों को लिए तोड़

वह ताक दिए थे बस जीवन को लिए मोड़

आस चढ़ी प्यास कुछ खास हुए एहसास

जाना-बूझा न सुना रिश्ता सा लिए जोड़


टहनी से चुने शब्द पर चढ़ा भाव का मुलम्मा

लिखें या कहें कोशिश कश्मकश संग होड़

एहसास जिसमें प्यास हो वह कैसे खास हो

एक आतुरता एक बेचैनी सागर सा है आलोड़


उनका ताकना उनकी आदत भी अदा भी है

उनमें बहकना स्वाभाविक देख जी उठे मरोड़

व्यक्तित्व का कृतित्व जब जीवंत अस्तित्व लगे

निजत्व के घनत्व का अपनत्व बढ़े तब दौड़


इसलिए भी किसलिए कभी हँसलिए कथ्यलिए

बहेलिए सा चलदिए पहेलियों का जाल ले बढ़ा

उनका ताकना जबसे लगे है कोमल सा बांधना

असीम प्यास लिए आस सम्मान हेतु हो खड़ा।


धीरेन्द्र सिंह

04.08.2025

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