साहित्य जब से स्टेडियम का प्यास हो गया
धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया
विश्वविद्यालय सभागार में खिलती संगोष्ठियां
महाविद्यालय कर स्वीकार करती थीं युक्तियां
यह दौर गलेबाजों युक्तिकारों का खास हो गया
धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया
साहित्य का अब विभिन्न बाजार बन गया
बिकता जो है उसका तय खरीददार धन नया
पुरानी रचनाओं का जबसे विपणन आस हो गया
धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया
सब हैं लिखते छपने, बिकने पुरस्कार के लिए
अंग्रेजी भाषा की लड़ियाँ हिंदी के टिमटिमाते दिए
रचनाकार तले रचनाओं का फांस हो गया
धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया
मॉल मल्टीप्लेक्स में एक संग कई फिल्में
इसी धुन पर स्टेडियम में साहित्य फड़कें
एकसंग कई प्रस्तुति साहित्य तलाश हो गया
धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया।
धीरेन्द्र सिंह
22.11.2024
15.13