शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

साहित्य

 साहित्य जब से स्टेडियम का प्यास हो गया

धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया


विश्वविद्यालय सभागार में खिलती संगोष्ठियां

महाविद्यालय कर स्वीकार करती थीं युक्तियां

यह दौर गलेबाजों युक्तिकारों का खास हो गया

धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया


साहित्य का अब विभिन्न बाजार बन गया

बिकता जो है उसका तय खरीददार धन नया

पुरानी रचनाओं का जबसे विपणन आस हो गया

धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया


सब हैं लिखते छपने, बिकने पुरस्कार के लिए

अंग्रेजी भाषा की लड़ियाँ हिंदी के टिमटिमाते दिए

रचनाकार तले रचनाओं का फांस हो गया

धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया


मॉल मल्टीप्लेक्स में एक संग कई फिल्में

इसी धुन पर स्टेडियम में साहित्य फड़कें

एकसंग कई प्रस्तुति साहित्य तलाश हो गया

धनाढ्य वर्ग का साहित्य तब घास हो गया।


धीरेन्द्र सिंह

22.11.2024

15.13