बुधवार, 5 जून 2024

तुम चलोगी

 प्रणय पग धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे


कहो, तुम चलोगी

संग मेरे बहोगी

सपनो को घेरे-घेरे

मन के तीरे-तीरे


आत्मिक है निमंत्रण

सुख शामिल प्रतिक्षण

उमंग मृदंग फेरे-फेरे

मन के तीरे-तीरे


व्यग्र समग्र जीवन

चतुराई से सीवन

छुपाए तागे उकेरे-उकेरे

मन के तीरे-तीरे


आओ करें मनमर्जियाँ

अनुमति की ना मर्जियाँ

नव उद्गम धीरे-धीरे

मन के तीरे-तीरे।


धीरेन्द्र सिंह

06.06.2024

05.16



शनिवार, 1 जून 2024

ना झूम पाए

 बहुत डूबकर भी न हम डूब पाएं

डुबकी भटकी या बुलबुले सताएं

मचलती बहुत ज़िंदगी है दुलारी

खुदकी है मस्ती पर ना झूम पाएं


निगाहों के चितवन भी भ्रम फैलाएं

मुस्कराहट की लहरें तट ही दिखाएं

क्या आवधिक है जीवन आबंटित

खुदकी है मस्ती पर ना झूम पाएं


हृदय कामनाएं लगें बंदर सरीखी

इस डाल से उस डाल सफर रीति

है कोई बंधन आजीवन गुनगुनाए

खुदकी है मस्ती पर ना झूम पाएं


मजबूरी, विवशता या मोह आकर्षण

सब में है स्वार्थ प्रेम भी होता कृपण

प्यार धोखे में जीता हम कैसे बताएं

खुदकी ही मस्ती पर ना झूम पाएं।


धीरेन्द्र सिंह

01.06.2024

12.30



गुरुवार, 30 मई 2024

सतकर्मा

 आप जब महके चमन गए शरमा

आप जब चहके गगन गए भरमा

यूं ही हैं अनोखे आप जानते नहीं

मुझसे हुए परिचित शायद सतकर्मा

 

आपको समझूं तो उठे झूम फिजाएं

प्रकृति ले चूम इंद्रधनुष आप सजाए

एक आप अनोखी शेष नित का कर्मा

मुझसे हुए परिचित शायद सतकर्मा

 

विशिष्ट हैं घनिष्ट है प्रीति समष्टि है

जितना भी समझें गहन गूढ़ निष्ठ हैं

आपके प्रभाव में सब होते हितकर्मा

मुझसे हुए परिचित शायद सतकर्मा।

 

धीरेन्द्र सिंह

26.05.2024

21.28