बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

लिखना आसान

 लिखना आसान है

 गढ़ना नहीं

प्यार खिलवाड़ कहां

डरना नहीं,


यही सूक्ति वाक्य

निस जो दोहराए

प्यार की पायलिया

खनक फिर धाए,

व्हाट्सप्प, टेलीग्राम,

इंस्टा जो भी पाए,

मूड मिजाज जांच 

प्रेम चर्चा दौड़ाएं,


लिखते समय भाव

मढ़ना नहीं

प्यार खिलवाड़ कहां

डरना नहीं,


हाल पूछो, चाल पूछो

और कोई मलाल पूछो

खुश रहें खिलखिलाएं

युक्तियां क्या हो सोचो,

निरंतर जीवंतता पनपे

समय से अवसर नोचो,

कोई धड़क उठा क्यों

तर्ज है नहीं सोचो,


लिखते समय निभाव

उघड़ना नहीं,

प्यार खिलवाड़ कहां

डरना नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

16.10.2024

06.20




सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

अनुगूंज

 एक अनुगूंज

मद्धम तो तीव्र

सत्य को कर आलोड़ित

यही कहती है,

धाराएं वैसी नहीं

जैसी दिखती

बहती हैं;


मौलिकता

या तो कला में है

या क्षद्म प्रदर्शन में

फिर व्यक्तित्व क्या है

परिस्थितियों के अनुरूप

मेकअप किया एक रूप

या बदलियों में

उलझा धूप;


पगडंडियों की अनुगूंज

खेत-खलिहान से होते

दूब पर कंटक पिरोते

गूंजती है मद्धम

तलवों की आह

दब जाती है,

क्या अब यही

जीवन थाती है ?


गूंज बन पुंज

हो रहा अनुगूंज

कोई रहा देख

किसी को रहा सूझ,

जिंदगी ठुमक कहती

मनवा मन से बूझ।


धीरेन्द्र सिंह

15.10.2024

09.26




शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

वर्चस्वता

 सब कुछ अगर आप हैं

तो आप कौन हैं?

यही समझना है मुश्किल


कि ताप कौन हैं;


हर क्षण में लगते संयमित

यह थाप कौन है?

भावनाओं पर यह नियंत्रण

कि अपराध कौन है;


कब होंगे सहज आप भी

कि निभाव कौन है?

सर्वस्वता का भ्रम है क्यों

कि यह बिखराव क्यों है।


धीरेन्द्र सिंह

13.10.2024

08.19

पुणे



गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

कविता

 क्या लिखा जाए?

कुछ नहीं सुझाती

अंतर्चेतना तब

उठता है यह प्रश्न

और विवेक

लगता है ढूंढने

भावनात्मक आधार;


लिखी जाती है तब 

कविता मस्तिष्क से

गौण हो जाता तब

भाव

अधिकांश कविताओं का

ऐसा ही निभाव:


लिखे जाते हैं जब विचार

बौद्धिकता देती हुंकार

कथ्य पक जाते

भट्टे की ईंट की तरह

और भाव

हो जाते ठोस,

कविता नहीं जोश;


भावनाओं की डोरियों पर

फैलाए जाते हैं शब्द

तब उगती है कविता

कभी सूर्य से

कभी चाँद सी

और सिमट जाती है जिंदगी

तेल भरे बालों में

लाल फीता का

दो फूल सजाए

रोशनी सी।


धीरेन्द्र सिंह

11.10.2024

09.16