बुधवार, 6 अप्रैल 2022

शब्द

 सुनो प्रयास तज्ञ शब्द संचयन

समेट पाओ क्या स्मिति नयन

उठाए भार अभिव्यक्ति गमन

रंग पाओगे मुझ जैसे प्रीत चमन


मेरा सर्वस्व ही मेरा निजत्व है

शब्द कहो कहां तुम्हारा है वतन

मेरी अनुभूतियां परिकल्पनाएं 

शब्द कर पाओगे हूबहू जतन


आत्मा मेरी जुड़े आत्मा उसकी 

धरा की कोशिशें ठगा सा गगन

बहुत बौने, बहुत अधूरे हो शब्द

मेरी आत्मा मेरी आराधना, नमन।


धीरेन्द्र सिंह

06.04.2022

16.08