गुरुवार, 2 मार्च 2023

फागुन गीत


अस्तित्व ही घुल जाए

आपकी बातों, ठिठोली में

अब कैसा कोई रंग चढ़े

मुझपर इस होली में


शब्द सधे सब रंग गहे

तरंग, उमंग शब्द डोली में

अभिव्यक्त का उड़े भाव

निःशब्द आपकी होली में


लिखनेवालों ने लिख डाला 

होली को रसबोली में

फागुन गीत भटकते दिखते

देह धाम मद खोली में


पर्व कोई तो बदल रहा

वासना भाव छिछोरी में

श्रृंगार अब लुप्त हो चला

बुढ़वा देवर लागे होली में।


धीरेन्द्र सिंह

03.02.23

09.51


इस होली में


हिचके रंग गुलाल, देख गुलाबी गाल

ना सोचें नारी ही, रखतीं सुर्खाबी ताल

पुरुष गाल रंग जाएं, फागुनी ठिठोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

नारी नयन सृष्टि पिचकारी, लगे दुधारी

अंग-अंग रंग लिए, हो अनुपम चित्रकारी

पुरुष ठगा सृष्टि निरखे, अटकी बोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

घिर जाएं नारियों से, कान्हा ना बन पाएं

देख घबराया चेहरा, संग नारी मुस्काएं

झुकाए पलकें सोचे, रंग बन गए टोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में

 

महिलाओं की देख लगन, गगन रंग डूबा

होली में जब नारी निकलें, सहमे सूबा

रंग लिए आजीवन चलतीं, नारी झोली में

नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में।

 

धीरेन्द्र सिंह

02.02.23

20.24