भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
वाह
आह
ऊँह
नाह
चाह
दाह
बाहं
राह
छाहँ
लांघ
माह
डाह
स्वाह
थाह।
धीरेन्द्र सिंह
14.05.2024
21.12