शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

घूर

 घूरे पर बैठा व्यक्ति

सोचता

कितनी ऊंचाई है

क्या किसी ने

जिंदगी यह पाई है,


घूरा यहां गौण है

व्यक्ति ऊपर बैठा

सिरमौर है,


प्रमुखतया 

गोबर से निर्मित घूरा

चला जाएगा

बनकर जैविक खाद

अनाज का करने उत्पाद,

घूरे पर बैठा व्यक्ति

रहेगा सोचता

हर्ष के अतिरेक में

फिर ढूंढेगा कोई घूरा

देख अवसर बैठ जाएगा

और व्यक्ति सोचेगा

 अबकी शायद घूरा

उस व्यक्ति में ही

फसल उगाएगा,


चाहत

विवेकहीन

चटोरी होती है,

जब भी करती है संचय

जिंदगी

घूरा होती है।


धीरेन्द्र सिंह

31.0१.2025

09.28



बुधवार, 29 जनवरी 2025

अग्नि

 रात यादों में सो ही जाती है

जिंदगी अक्सर खो जाती है

अलाव दिल के रहते जलते

ठिठुरन फिर भी सताती है


कर्म की अंगीठी पर कामनाएं 

धर्म की अनबुझी कल्पनाएं

चाहतें उभरती जगमगाती है

अपने भीतर ही अपनी थाती है


चले कुछ दूर बदल दी राहें

व्योम की कल्पना पसरी बाहें

निकटता घनिष्ठता अविनाशी है

जीवंतता भोर हर जिज्ञासी है


कहां से कब तलक क्या मतलब

राह तकती है कदमों का अदब

शून्य में शौर्य जलती बाती है

अग्नि जिस रूप में हो साथी है।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2025

19.28



मैंग्रोव

 पथरीली राह

और राह के दोनों ओर

मीलों दूर तक

फैला मैंग्रोव,

अपनी जड़ों की

बनाए पकड़

सागर की लहरें

समझें धाकड़,

रोज गुजरते हैं कदम

राह के पत्थरों से

करते बातें;


राह के दोनों ओर

फैले मैंग्रोव से

आती चिड़ियों की

विभिन्न चहचहाअट

खींच लेती हैं दोनों बाहें

अपनी ओर

कर आकर्षित

और मैंग्रोव के दोनों कंधे पर

रख अपना दोनों हाँथ

चलते जाता हूँ

पथरीली राहों पर,


पहुंच जाता हूँ

सागर किनारे और

हवाएं सिमट आती हैं

मेरे बाजुओं में

सामने अटल सेतु

बौद्धिक योग्यता का

प्रमाण दर्शाता है

और सागर की लहरें

कदम चूमने को

हो जाती हैं आतुर

शायद हरना चाहती हो

पथरीली राहों की चुभन,


ऐसे ही मिलती है जिंदगी

प्रतिदिन सूर्योदय संग

जीवन की पथरीली राहों में

होते हैं मैंग्रोव

जिनसे जुड़कर

पहुंचा जा सकता है

जीवन सागर।


धीरेन्द्र सिंह

29.01.2025

18.08



सोमवार, 27 जनवरी 2025

साइबेरियन पक्षी

 समूह

एक प्राकृतिक व्यूह

सृष्टि में

दिखता है चहुंओर

इसीलिए

जीवन है एक शोर,


शांति या सन्नाटा

जीवन का है

ज्वार-भाटा

सागर जल की तरह

रहता है आता और जाता,


शीत ऋतु आते ही

हो जाता प्रमुख समूह

असंख्य विदेशी पक्षियों संग,

सागर तट पर ढूर-ढूर तक

अधिकांश धवल कुछ रंगीन

समूह हो उठता है मुखरित,


प्रातः सागर तट पर

साइबेरियन पक्षी नाम से

होते हैं सम्मिलित

कई विदेशी पक्षी

और सागर तट भर जाता है

अनजान, अपरिचित, आकर्षक

असंख्य, अद्भुत पक्षियों से,


अटल बिहारी सेतु

कराता है दर्शन इसका

गुजरते वाहनों को,

अब बहुत कम संख्या में

रह गए हैं पक्षी

हो गया है समाप्त इनका महाकुम्भ

तट को साफ कर रहे हैं

समूह गठित पक्षी।


धीरेन्द्र सिंह

28.01.2025

04.03



शनिवार, 25 जनवरी 2025

बंदगी

 चलिए न जिस तरह ले चलती हैं जिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


उड़ान के लिए एक छोर चाहता है बंदगी

वरना उड़ा ले जाएगी अनजानी जिंदगी

अच्छा लगता है अदाओं की भी नुमाइंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


एक हो आधार तयशुदा ठहराव का द्वार

धूरी हो तो मन बहकने का है यह आधार

जिंदगी एक नियमित भटकाव क्यों शर्मिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी


कहां कब होता मृदुल भटकाव बताता है कौन

मधुरतम भावनाएं लहरतीं है पर होती है मौन

जिंदगी व्यस्तता में लड़खड़ाते ढूंढती है जिंदगी

यह भला क्या बात हुई चाहिए न बंदगी।


धीरेन्द्र सिंह

25.01.2025

21.30